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दौलत पाय न कीजिए / गिरिधर
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Vaibhav Kumar Nain (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:19, 3 जनवरी 2011 का अवतरण
दौलत पाय न कीजिए, सपनेहु अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान॥
ठाउं न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै॥
कह 'गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सबही के दौलत॥