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आग बहुत है / शांति सुमन

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भीतर-भीतर आग बहुत है
बाहर तो सन्नाटा है

सड़कें सिकुड़ गई हैं भय से
देख ख़ून की छापें
दहशत में डूबे हैं पत्ते
अँधकार में काँपें
किसने है यह आग लगाई
जंगल किसने काटा है

घर तक पहुँचानेवाले वे
धमकाते राहों में
जाने कब सींगा बज जाए
तीर चुभें बाहों में
कहने को है तेज़ रोशनी
कालिख को ही बाँटा है

कभी धूप ने, कभी छाँव ने
छीनी है कोमलता
एक कराटेन वाला गमला
रहा सदा ही जलता
ख़ुशियों वाले दिन पर लगता
लगा किसी का चाँटा है।