भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूठ क्या बहाना क्या / इसाक अश्क
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:00, 4 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इसाक अश्क }} {{KKCatNavgeet}} <poem> हम जैसे लोगों का ठौर क्या ? …)
हम जैसे लोगों का
ठौर क्या ?
ठिकाना क्या ?
भूख प्यास
पीड़ाओं ने
झिड़की दे-देकर पाला
हमसे है दूर
सुखद भोर का उजाला
यह कहने लिखने में
लाज क्या ?
लजाना क्या ?
पाँव मिले
भीलों जैसे अरूप
सौ भटकन वाले
इसी वज़ह
राजभवन से अक्सर
हम गए निकाले
यह सच है इसमें अब
झूठ क्या ?
बहाना क्या ?