भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दस की भरी तिजोरी / कैलाश गौतम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:57, 4 जनवरी 2011 का अवतरण ("दस की भरी तिजोरी / कैलाश गौतम" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सौ में दस की भरी तिजोरी नब्बे खाली पेट
झुग्गीवाला देख रहा है साठ लाख का गेट ।

बहुत बुरा है आज देश में
लोकतंत्र का हाल
कुत्ते खींच रहे हैं देखो
कामधेनु की खाल
      हत्या, रेप, डकैती, दंगा
      हर धंधे का रेट ।

बिकती है नौकरी यहाँ पर
बिकता है सम्मान
आँख मूँद कर उसी घाट पर
भाग रहे यजमान
      जाली वीज़ा पासपोर्ट है
      जाली सर्टिफ़िकेट ।

लोग देश में खेल रहे हैं
कैसे कैसे खेल
एक हाथ में खुला लाइटर
एक हाथ में तेल
      चाहें तो मिनटों में कर दें
      सब कुछ मटियामेट ।

अंधी है सरकार-व्यवस्था
अंधा है कानून
कुर्सीवाला देश बेचता
रिक्शेवाला ख़ून
      जिसकी उंगली है रिमोट पर
      वो है सबसे ग्रेट ।