भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेत के विस्तार में / नवनीत पाण्डे

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:19, 7 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>रेत के विस्तार में रहा निरंतर खोजता एक और आदमी रेत कांपी, हिली, उ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रेत के विस्तार में
रहा निरंतर खोजता
एक और आदमी
रेत कांपी, हिली, उलटी
उगल दिए रेत ने
आदमी ही आदमी
सो रहे थे जाने कब से
रेत के आगोश में
रेत के विस्तार में