भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज़ादी / त्रिलोकचन्द महरूम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:54, 7 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=त्रिलोकचन्द महरूम | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> फ़ज़ा क…)
फ़ज़ा की आबरू है परचमे-गर्दूं वक़ार अपना
कि है इस दौर की आज़ाद क़ौमों में शुमार अपना
ग़ुलामी और नाकामी का दौरे इब्तिला गुज़रा
मुसाइद बख़्त है अब और हामी रोज़गार अपना
छुटे दामन से अपने दाग़ हाए-नंगे-महक़ूमी
वतन अपना है, अपनी सल्तनत है, इक़्तिदार अपना
न गुलचीं ग़ैर है कोई न है सैयाद का खटका
चमन अपना है, अपने बाग़बाँ, लुत्फ़े-बहार अपना
अब अय अहले-वतन! इसको बिगाड़ें या बनायें हम
मुक़द्दर पर है अपने हमको हासिल इख़्तियार अपना