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थके हुए शब्द / मालचंद तिवाड़ी

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पर्दा उठाओ
प्रेक्षागृह में चिल्लाया कवि
अकेला बैठा था-
रंगसाला में
कौन उठाता पर्दा ?
शब्द थे
कवि ने दी
उन्हें बहुतेरी सियर्सल
करना था शब्दों को नाट्य
उठाना था पर्दा-
अर्थ से ।
वे ही दौड़े
जिनमें, जिनको, जो भी
करना था अभिनय
नहीं हुआ ।
अखिर कवि ने किया
शब्दों का नाट्य
कवि ने देखा
नाट्य देखते –
थके हुए शब्दों को ।

अनुवादः नीरज दइया