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अग्नि-4 / मालचंद तिवाड़ी
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बिरहन है अग्नि
बाट जोहती
जल की !
जल जोगी
लौट जाता
अलख जगा कर
देहरी से ही
इस बिरहन की !
अनुवादः नीरज दइया