भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हे मेरी तुम (कविता) / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:26, 9 जनवरी 2011 का अवतरण ("हे मेरी तुम (कविता) / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे मेरी तुम!
बीज (जन्म देने का कारण) कहाँ हमारा?
क्या जानेगा कोई ज्ञाता, पंडित, ज्ञानी!
मैं कहता हूँ;
वह त्रिकाल है, जिसने हमको जन्म दिया है;
और उसी में हम रहते हैं, लय रहते हैं।
जन्म-मरण का कोई कारण और नहीं है॥

रचनाकाल: २५-०३-१९५८