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गरीबी / केदारनाथ अग्रवाल

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लघुत्तम है उसका नाम
महत्तम है उसकी गरीबी
शाम की लंबी छायाओं के समान
जो उसके चलने से
जमीन पर पड़ती है

उसका पुल टूट गया है
इस पार
बचपन है
उस पार
यौवन
बीच में
नदी है
पाँव पकड़कर
गड़प जाने वाली

रचनाकाल: ०६-१०-१९६५