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पिए ज्ञान को / केदारनाथ अग्रवाल

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पिए ज्ञान को
लिए पड़ी है
सूखी उड़ती रेत।
जिए ज्ञान को
खिले खड़े हैं
कल के-फल के खेत

रचनाकाल: ०१-०४-१९६७