न धूप को है
न सैर को है
अपना अहसास
मगर है
जैसे नहीं है
आदमी के पास
आदमी की शक्ल
आदमी का बोध
आदमी की अक्ल
उसका अस्तित्व
सपाट है-
सपाट
नदारद अस्तित्व का
अनंत सुनसान
रचनाकाल: २७-०१-१९६८
न धूप को है
न सैर को है
अपना अहसास
मगर है
जैसे नहीं है
आदमी के पास
आदमी की शक्ल
आदमी का बोध
आदमी की अक्ल
उसका अस्तित्व
सपाट है-
सपाट
नदारद अस्तित्व का
अनंत सुनसान
रचनाकाल: २७-०१-१९६८