भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टाँड़ / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:54, 9 जनवरी 2011 का अवतरण ("टाँड़ / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आरियों से चीरे गए हम,
बुरादा बने-पाट बने हम,
फिर भी तुमने हृदय न रक्खा
दिया जलाकर हर्ष न रक्खा
पंख खोलकर प्यार न रक्खा
कनक किरन का हार न रक्खा
यौवन का आभार न रक्खा
हम पर अंगड़-खंगड़ रक्खा।

(यह कविता २२-११-१९५९ को लिखी कविता का परिष्कृत रूप है)
रचनाकाल: १५-११-१९७०