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नारियल के पेड़ / केदारनाथ अग्रवाल

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नारियल के पेड़,
दंडी देह,
जोगी-जटा खोले,
गए ऊपर,
उठे ऊँचे-गगन छूते
खड़े
गाड़े जड़ें
घेरे खुली छत को,
हवा खाते,
हरहराते,
जय-विजय का जाप करते,
अंध तम से युद्ध करते
यामिनी को कामिनी-सा सिद्ध करते,-
नहीं थकते-नहीं थकते,
पत्तियों से उलट जाते-पलट जाते,
हुलस जाते,
गृही जैसे पुलक जाते,
हरे रहते-हरा करते,
चेतना से भरा करते,
परा-अपरा अप्सरा की पीर हरते

रचनाकाल: १८-०६-१९७१, मद्रास