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तुम झूठ बोलते हो / केदारनाथ अग्रवाल

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तुम
झूठ बोलते हो
जब
सच बोलने का साहस बटोरते हो
मगर
साहस हार जाता है
और शब्द
जो तुम बोलते हो
जमीन पर गिर पड़ते हैं
कोयले की तरह
बुझे-बुझे
और
लगी रह जाती है
मुँह के चारों ओर तुम्हारे
एक कलौंछ
देखकर जिसे
घृणा होती है तुमसे
और शर्म आती है
तुम्हारे आदमी होने पर

रचनाकाल: ०१-०९-१९७१