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हैरान जिंदगी / केदारनाथ अग्रवाल
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नट और नटिन
नाचते हैं
धुआँ का नाच
हैरान जिंदगी
नाश और नशे की चिलम पकड़े
धुएँ पर धुआँ पीटती है
मौत की मुहब्बत में फँसा आदमी
अवैध कामशास्त्र पढ़ता है
और रामनामी सड़कों पर मौज से
मदन की मुद्राओं का प्रदर्शन करता है
ज्ञान न ध्यान रत्ती भर फिर भी पंडित गुमानी
आदमी को कुत्ता
और कुत्ते को आदमी समझते हैं
मुखर नहीं होती सच की जबान
जहाँ मुखर होना चाहिए झरझराते झरने की तरह
चुप नहीं रहती है मन की मैना
जहाँ चुप रहना चाहिए, अवाक दर्पण की तरह
रचनाकाल: ०१-०९-१९७१