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ढलते सूर्य की ढलती देह में / केदारनाथ अग्रवाल

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इस उम्र में अब भी
ढलते सूर्य की ढलती देह में
तुमको जिलाए और अपना बनाए
जी रहा हूँ मैं जीने में तुम्हारे
तुमसे लव लगाए
मन में तुम्हारे मन अपना रमाए
सब कुछ भूला
इंद्रियातीत होकर तुम्हारे संसर्ग में फूला

रचनाकाल: १२-०९-१९७१, रात