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कबीर / केदारनाथ अग्रवाल

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कबीर ने
बखिया उधेड़ी है
राम और रहीम के
अंधे बंदों की

मारी,
जब मारी है उन्होंने
म्यान से खिंची तलवार
धड़ल्ले से

न डरे हैं डर से वह
न होहल्ले से
करते-करते कर गए हैं
वह काम
जो करते-करते कर न सके
एक भी महात्मा
या महामान्य

शिलाएँ तोड़ती
बहती है
कबीर की बानी
हृदय से उमड़कर
प्रवाहमान है
उसका दमदार पानी

रचनाकाल: १४-०३-१९७२, बाँदा