भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह पिनाक था परंपरा का / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 9 जनवरी 2011 का अवतरण ("वह पिनाक था परंपरा का / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो धनुष
राम ने तोड़ा,
वह पिनाक था
परंपरा का,
उसे राम ने तोड़ा,
भू कन्या
सीता को ब्याहा;
ब्याह सके थे
जिसे न कोई
उसे तोड़कर
राज-वंश के योद्धा

तब
उस युग में
परंपरा ही शिव थी
इसीलिए वह धनुष बन गई शिव की

जनक
प्रकृति से विद्रोही थे
परंपरा के
इसीलिए प्रण ठाना।
तोड़ो धनुष-
ब्याह लो सीता-
जो जमीन की सादर बेटी
यह सच बात
आज भी सच है :

तोड़ो
तोड़ो
परंपरा को
बनो राम
ब्याहो
धरती की बेटी सीता।

रचनाकाल: २७-०८-१९७२, रात