भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदमियों के आंकड़े / भरत ओला
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:03, 11 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= भरत ओला |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>जब मेरे दादा गुजरे …)
जब मेरे दादा गुजरे
अर्थी के पीछे
सैंकड़ों आदमी थे ।
बापू गुजरे
जब बीसेक ।
हो सकता है
जब मैं मरूंगा
चार ही नहीं हो ।
अब आप ही बताएं
आदमी घटे या बढ़े ?
अनुवाद : नीरज दइया