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गोमती / केदारनाथ अग्रवाल

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मौत की मुट्ठियों से
निकलकर बाहर
जमीन में लोटती गोमती
प्यार का पय लिए
तुम्हें खोजती है
मुख्यमंत्री की संवेदना
बटोरती है
और हम
और हम जैसे तमाम लोग
समय की पीठ पर
लट्ठ मारते,
भागती-दौड़ती दुनिया में
चकरघिन्नी काटते हैं
काश
हम देखते तुम्हें
काल के सिर पर सवार
दिग्विजय करते
वर्ष-प्रतिवर्ष
जीवन को जवान करते

रचनाकाल: संभावित १९७५