मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन ।
मेरी छंद बध्ध वाणी में नहीं किसी क्रिश्नाभिसारिका के आकुल अंतर की धड़कन;
अरे किसी जनपद कल्याणी के नूपुर के रुनझुन स्वर पर मुग्ध नहीं है मेरा गायन !
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन ।
मैं न कभी नीरव रजनी के अंचल में छुपकर रोता हूँ;
आंसू के जळ से अतीत के धुंधले चित्र नहीं धोता हूँ;
चित्रित करता हूँ समाज के शोषण का वह शोणित प्लावन ।
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन ।
आज विकट कापालिक बनकर !
महाप्रलय के शंखनाद से मरघट के सोये मुर्दों को जगा रहा हूँ !
जगा रहा हूँ अभिनव की वह ज्वाल निरंतर,
जलकर जिसमें स्वयं भस्म हो जय पुरातन !
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन ।