भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अगहन का पद्य / मणिका दास
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:28, 12 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मणिका दास |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} Category:असमिया भाषा <poem> 1.…)
1.
मेरे सीने में
रजस्वला धान की असल
भरी दोपहरी
गौरैया की चहचहाहट
2.
कौन कहता है
अगहन नहीं जानता माया
उधर देखो
धान के खेत में राधा कृष्ण
के दिल का सौदा
3.
पिता की
प्रेयसी का नाम
अगहन
दुःख की बाढ़
उजाड़ कर चली गई
फिर भी
रात नींद में देखते रहे
उसी के सपने
4.
कभी-कभी तुम
अगहन जैसे लगते हो मुझे
एकटक देखते रहने पर भी
कलेजे की प्यास
नहीं बुझती
5.
तुम आओगे
आज अगहन की वीरान दोपहर में
मैं नदी किनारे
ऊँचे टीले पर खड़ी रहूँगी
केले के पत्ते पर लेकर
नमक, तेल, चकोरा
कच्ची मिर्च
मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार