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महकता मरूआ / सतीश छींपा

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जब हम मिले थे
पीपल पर पक रही थी
भरभटी
यौवन पर था
बोगनबेलीया
मरूआ महक रहा था
चमक रहा था चेहरा चम्पा का
अब-
पीपल से पत्ते झरने लगे है
नंगी है शाखें शहतूत की
गूलमोहर-
उदास खड़ा है
नीम पर भी तारी है
पीलापन
और हम-
एक दूजे से दूर है।