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मर्द का बच्चा / केदारनाथ अग्रवाल
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मर्द का बच्चा
औरत के जिस्म से मुहब्बत करता है,
जिस्म को कुश्ती लड़ने का अखाड़ा समझता है,
और जब उसकी मेहनत-मशक्कत
औरत के पेट में फूलती है
तब उसकी पहलवानी और सिट्टी पिट्टी भूलती है,
औरत को छोड़कर फौरन फरार होता है,
फिर बाप अपनी बेटी को
घर से निकालकर अनाथालय पहुँचाता है
मर्दानगी और मुहब्बत की
ऐसी-तैसी होती है
हमारे देश में
इश्क और हुस्न के साथ
आए दिन भँडैती होती है
हमारे देश में
रचनाकाल: १९-०७-१९७६, मद्रास