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फूल हैं / केदारनाथ अग्रवाल

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फूल हैं
के अब के बसंत की हवा में
थरथराते हैं।
खिलते-खुलते भी
मंद मौन
प्रकाशित
मुस्कुराते हैं।

रचनाकाल: ०६-०२-१९७५