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नेताओं को न्यौता! / शैलेन्द्र

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रचनाकार: शैलेन्द्र

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लीडर जी, परनाम तुम्हें हम मज़दूरों का,

हो न्यौता स्वीकार तुम्हें हम मज़दूरों का;

एक बार इन गन्दी गलियों में भी आओ,

घूमे दिल्ली-शिमला, घूम यहाँ भी जाओ!


जिस दिन आओ चिट्ठी भर लिख देना हमको

हम सब लेंगे घेर रेल के इस्टेशन को;

'इन्क़लाब' के नारों से, जय-जयकारों से--

ख़ूब करेंगे स्वागत फूलों से, हारों से !


दर्शन के हित होगी भीड़, न घबरा जाना,

अपने अनुगामी लोगों पर मत झुंझलाना;

हाँ, इस बार उतर गाड़ी से बैठ कार पर

चले न जाना छोड़ हमें बिरला जी के घर !


चलना साथ हमारे वरली की चालों में,

या धारवि के उन गंदे सड़ते नालों में--

जहाँ हमारी उन मज़दूरों की बस्ती है,

जिनके बल पर तुम नेता हो, यह हस्ती है !


हम तुमको ले साथ चलेंगे उस दुनिया में,

सुकुमारी बम्बई पली है जिस दुनिया में,

यह बम्बई, आज है जो जन-जन को प्यारी,

देसी - परदेसी के मन की राजकुमारी !