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आभै रा मोती / श्याम महर्षि

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आभै रा हीरामोती
बिछग्या है म्हारै खेत,
सीटां रा मोटा दांणा
गुवार-मोठ री लड़ालूम फळ्यां
म्हनै इयां लागै
कै खेत पै‘र
लिया है गहणां,

तपते सूरज री
किरणां सूं
पळ्का मारता ऐ गहणां
म्हारै मन नैं
हरखावै,

जोऊं सुपना
कर देस्युं
पीळा हाथ झमकू बेटी रा
चेनै बाणिये रो ब्याज
चूक जावैलो इण बरस,

म्हारो मन रो चोर
ललचावै बारम्बार,
ऊडीकूं कातिखळां
अर दिवाळी नै,
कद बै दिन आवै
अर कद मैं लाटूं खळा
कै भरूं कोठा म्हारा
इण बरस।