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दाल-भात खाता है कौआ / केदारनाथ अग्रवाल

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दाल-भात खाता है कौआ
मनुष्य को खाता है हौआ
नकटा है नेता धनखौआ
न कटा हो मानो कनकौआ

रचनाकाल: २१-०१-१९६९