भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे / फ़राज़
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:47, 7 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ }} Category:गज़ल क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़म...)
क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे
दिल वो बेमेहर कि रोने के बहाने माँगे
अपना ये हाल के जी हार चुके लुट भी चुके
और मुहब्बत वही अन्दाज़ पुराने माँगे
हम न होते तो किसी और के चर्चे होते
खल्क़त-ए-शहर तो कहने को फ़साने माँगे
दिल किसी हाल पे माने ही नहीं जान-ए-"फ़राज़"
मिल गये तुम भी तो क्या और न जाने माँगे