भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूलना-सीखना / मालचंद तिवाड़ी
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:51, 16 जनवरी 2011 का अवतरण
बहुत मुश्किल नहीं होता सीखना
सारा संसार सीखता है
सीख-सीख कर चलता है
नया होता रहता है
बालक से आइन्सटाईन तलक
बहुत मुश्किल हो जाता है भूलना
इस शास्त्र की तो एक ही पण्डित थीं तुम
भूल कर मुझे भूलना सिखला दिया
देखो, मैं योगी हो गया
भूल गया संसार को
तुम्हें भूलने के पथ पर चलता
अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा