Last modified on 16 जनवरी 2011, at 13:04

सब कुछ देखा / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:04, 16 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=खुली आँखें खुले डैने / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सब कुछ देखा,
फिर-फिर देखा,
जो देखा वह देखा देखा।
देखे में कुछ नया न देखा,
हेर-फेर का प्रचलन देखा,
दूषण देखा,
शोषण का अपलेपन
देखा।

अपलेपन का पीड़न देखा,
झोंपड़ियों को रोते देखा,
अठमहलों को हँसते देखा,
जाली मालामाली देखी,
कंगाली बदहाली देखी,
दुनियादारी डसती देखी
धरती
नीचे
धँसती देखी।

रचनाकाल: ३१-०१-१९९१