Last modified on 16 जनवरी 2011, at 14:57

स्त्री की नींद / नीलेश रघुवंशी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:57, 16 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलेश रघुवंशी |संग्रह=अंतिम पंक्ति में / नीलेश र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक छोटे से डाकख़ाने में
वो स्त्री अपनी सीट पर इतनी उदास इतनी अकेली
समय उसके आसपास नहीं होता ऊँघते और झपकियाँ लेते
एक ही ग़लती को दोहराती है बार-बार कंप्यूटर पर
काउंटर पर ठक-ठक की आवाज़
नींद और आलस से बाहर लाती है उसे
वह लिफ़ाफ़े की इबारत और भेजने वाले के
हाथों के कंपन से होती है कोसों दूर
नींद से भरी हुई इस स्त्री को देख
दफ़्तर के लोग पीटते हैं सिर कोसते हैं अपने बीच उसके होने को
घर और दफ़्तर के कभी न ख़त्म होने वाले कामों के बीच
स्त्री की नींद कसमसाती है

सोमवार, 14 जुलाई 2003, भोपाल