भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सामाजिकता का तकाजा है / हेमन्त शेष
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:38, 17 जनवरी 2011 का अवतरण
सामाजिकता का तकाजा है
मेरी मानें तो अभी आप हजामत न बनाएँ
(अर्थी के साथ जाते हुए
तो कम से कम किसी को प्रफुल्लित और चाक-चौबन्द
नज़र नहीं आना चाहिए!)