भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िंदगी का आटा / रतन सिंह ढिल्लों

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:54, 17 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रतन सिंह ढिल्लों |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> किस जन्म के…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किस जन्म के
किस क़िस्म के
कर्म का फल है
यह ज़िंदगी
 
न पिछले का पता है
न ही अगले का पता है
ज़िंदगी का आटा
सदा रहता है मथता
और मौत के चूल्हे पर
गरम रहता है
तवा सदा ।
 
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला