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तरंग / रतन सिंह ढिल्लों
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ख़त्म नहीं होता
कभी भी तरंग का सफ़र
बाहर की तरफ़ फैलती है
लौट आती है फिर केंद्र की ओर
अपने ही संगीत संग
नाचती और गाती
रहती है तरंग ।
कब ख़त्म होगा
तरंग का यह सफ़र ।
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला