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तुम गाती हो / अनिल जनविजय


तुम गाती हो

गाती हो जीवन का गीत

और धूप-सी खिल जाती हो


तुम गाती हो

गाती हो सौन्दर्य का गीत

और फूल-सी हिल जाती हो


तुम गाती हो

गाती हो प्रेम का गीत

और रक्त में मिल जाती हो


मैं चाहूँ यह

तुम गाओ हर रोज़ सवेरे

कोई समय हो

हँसी हमेशा रहे तुम्हें घेरे


1998 में रचित