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मैं जिलाए और जगाए ही रहूँगा / केदारनाथ अग्रवाल
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मैं
जिलाए
औ’ जगाए ही रहूँगा
देह का दुर्लभ दिया।
चेतना से
ज्योति की जीवंतता से
तम यही तो हर रहा है-
आंतरिक
आलोक से
भव भर रहा है
सत्यदर्शी कर रहा है।
रचनाकाल: १८-०३-१९९१