भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चला भी न चला वह / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:57, 21 जनवरी 2011 का अवतरण ("चला भी न चला वह / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
चला भी न चला वह
समय के साथ,
जहाँ सब चलते हैं
जमीन में जीने के लिए,
गंध
और गमक से गमगमाते
शब्द और अर्थ से
खिलखिलाते।
न हुई सुबह उसकी सुबह;
न हुआ दिन उसका दिन,
न हुई शाम उसकी शाम,
न हुई रात उसकी रात।
न चुका भी चुका है वह
दूसरों के लिए,
अपने लिए नहीं।
रचनाकाल: ३०-०८-१९७५ / ३०-०८-१९९१