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चला भी न चला वह / केदारनाथ अग्रवाल

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चला भी न चला वह
समय के साथ,
जहाँ सब चलते हैं
जमीन में जीने के लिए,
गंध
और गमक से गमगमाते
शब्द और अर्थ से
खिलखिलाते।

न हुई सुबह उसकी सुबह;
न हुआ दिन उसका दिन,
न हुई शाम उसकी शाम,
न हुई रात उसकी रात।
न चुका भी चुका है वह
दूसरों के लिए,
अपने लिए नहीं।

रचनाकाल: ३०-०८-१९७५ / ३०-०८-१९९१