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मैकाले के खिलौने / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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इस कविता में कवि ने अँग्रेज़ों की जी-हुज़ूरी करने वाले अँग्रज़ी-भक्त-भारतीयों पर व्यंग्य कसा है

मेड इन जापान ,
खिलौनों से सस्ते हैं
लार्ड मैकाले के ये नये खिलौने

इन को ले लो पैसे के सौ-सौ दो-दो सौ
अँग्रेज़ी ख़ूब बोलते थे
सिगरेट भी अच्छी पीते थे
हो सकते हैं दो से दो-दो सौ,
ये नये खिलौने इनको ले लो ।

तब तक यह घटने के बजाय
हो जायेंगे करोडों-लाखों
ये सस्ते हैं इन्हें ले लो
पैसे के सौ-सौ दो-दो सौ ।