भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ुशबुओं की तरह महकते गए / चाँद शुक्ला हदियाबादी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:15, 25 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चाँद हादियाबादी }} {{KKCatGhazal}} <poem> ख़ुशबुओं की तरह महक…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ुशबुओं की तरह महकते गए
तेरी ज़ुल्फ़ों के साए डसते गए

जो न होना था वो हुआ यारो
भीड़ थी रास्ते बदलते गए

न मिला तू न तेरे घर का पता
हम तेरी दीद को तरसते गए

ज़िंदगी को जिया है घुट-घुट कर
दिल में अरमान थे मचलते गए

कैसा बचपन था बिन खिलौनों के
चुटकियों से ही हम बहलते गए

मेरे सपने अजीब सपने थे
मौसमों के तरह बदलते गए

जब छुपा बादलों की ओट में "चाँद"
ग़मज़दा थे सितारे ढलते गए