भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम-2 / अरुण देव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:46, 26 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण देव |संग्रह=क्या तो समय / अरुण देव }} {{KKCatKavita}} <poem>…)
कच्चे मांस की ख़ुशबू के पीछे
चीते की तरह दबे पाँव आया मैं
धीरे-धीरे तपा मैं इस आग में
पकता रहा नमक के घुल जाने तक
एक-एक नस को धीरे-धीरे सुलगाती रही यह आँच
एक-एक कोशिश जैसे ठहर गई हो
ठिठके खरगोश की तरह
भरता रहा रस
ताड़ वृक्ष में लटकी लबनी में बूँद-बूँद
जीवन शुरू करने से पहले का समय था यह