Last modified on 26 जनवरी 2011, at 14:00

जीवन / अरुण देव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:00, 26 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण देव |संग्रह=क्या तो समय / अरुण देव }} {{KKCatKavita}} <poem>…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क़लम उठाकर उसने पहला शब्द लिखा
जीवन

तपते पठार थे झाड़ियाँ थीं
था कुम्हलाया हरा-सा रंग

चीड़ के पत्तों पर पहाड़ों की उदासी
बर्फ़ की तरह रुकी थी
उसमें डोल रहे थे चमकीली सुबह के उदग्र छौने

नदियों के जल में बसी हवा पीने चला आया था सूरज
मछलियों के गलफ़ड़े में बचा था फिर भी जीवन

असफलताओं के बीच यह अन्तिम विश्वास की तरह था ।