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यात्री / प्रेमजी प्रेम
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मैं और तू
सुपर डीलक्स मोटर के
यात्री जैसे
दिन निकलते ही
पीछे-पीछे भाग रहे हैं
तेरी खिड़की से तू
मेरी खिड़ाकी से मैं
झांक रहे हैं बाहर ।
सुबह
मेरी खिडकी से
ललाई लिए
ऊपर आया था सूरज
अब तुम्हारी खिडकी में
हार-थक कर
उतर रहा है नीचे ।
आ मित्र , आ
सूरज का चढना-उतरना
देखना छोड़, जरा बतियाएं ।
बता, तू कौन है ?
कहां जा रहा है ?
कहां से आया है ?
सांझ का समय हो चला है
मौन तोड़े ।
लेकिन, पहले तू बोल ।
बोलने से ही पता चलेगा
सुपर-डिलक्स बस में
सुपर तू है या फिर मैं
जल्दी से बोल
उजाला कम होता जा रहा है।
अनुवाद : नीरज दइया