भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बसन्त गुजरते हुए / अम्बिका दत्त

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:24, 1 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अम्बिका दत्त |संग्रह=लोग जहाँ खड़े है / अम्बिका …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कहीं क्या छूट गया ?
कहीं कुछ छूट गया ?
लम्बे अरसे से/तुम्हारा/किसी का भी
खत नही आया
खाली-खाली सा है रास्ता
डाकिया आता है
दस्तक देकर लौट जाता है
खत नही
लौटते हुए डाकिये की
पीठ भर दिख पाती है
उसके कन्धे पर लटके थैले में
कई सारे खत हैं
तरह-तरह की बातें है उनमें
उनकी तफसील बयान करना-नामुमकिन है
इतने सारे खत
मगर मेरे लिये एक भी नही

दरवाजे की दस्तक से दौड़ कर आता हूं
दरवाजा खोलते-खोलते
एक लिफाफा देहरी पर छोड़ कर
चला जाता है, वह
सुनसान गली में
अपने दरवाजे पर खड़ा हूं मैं
हाथ में लिफाफा लिये
लिफाफे पर मेरा पता लिखा है
मगर उसके अन्दर कुछ भी नही है
लिफाफा खाली है
हाय राम ! अब क्या करूँ ?
पूरा का पूरा बसन्त गुजर गया
मेरे नाम -
मौसम का कोई संदेश ही नहीं आया
अनगिनत फूल खिले सृष्टि में
मैं कोई कविता ही नहीं लिख पाया।