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आस्थाओं के बीच से: अक्षर / अम्बिका दत्त
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संज्ञाएँ देता रहा
तुम्हारे मनाभावों को
विचारों को
जन्मजात रूग्णताओं को भी
मैं/अभीव्यक्ति के लिए
तुम्हारे जटिल विचारों को
मूर्त रूप देते हुए
कितना-कितना, किलष्ट हुआ मैं
निरन्तर जूझता रहा
तुम्हारी अव्यक्ता पीड़ाओं की भाषा जुटाते
कितनी उत्तेजनाऐं सहीं
तुम्हारी नासमझ/भावुक
संवेदनाओं के बीच/तब
जब तुम सम्प्रेषण की चौकट पर
दस्तक दे रहे थे
बिछाता रहा
मनस से वचन तक के
अनासक्त पठार खण्डों पर
शब्द-शब्द दूब !
रचता रहा
संगीत की कठिनतम रचनाएँ।