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सीख / अम्बिका दत्त

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मैंनें तो सिर्फ
एक गड्डे में अगुंली डुबो कर
सिर्फ इतना बताना चाहा
कि ये देखो/यहां
ठीक सड़क के बीचों-बीच खून है !

मैंने तो सिर्फ
कोठरी की दीवार की तरफ इशारा करके
इतना भर कहना चाहा
देखो ! कैद हवा
यहाँ से रूख बदलती है -
चहल कदमी के दौरान-सिर पटकती है
यहाँ/बन्द रोशनदान के कपाटों पर

मैंने तो सिर्फ
इतना कहना चाहा था
सच न नंगा होता है
न कपड़े पहने हुए
दरअसल, मैं तो सिर्फ सच बोलना चाहता था,
उन्होंनें मुझे सीख दी
‘‘ तेते पाँव पसारिये जैती लांबी सौर’’।