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अपने पांवों के लिए / अम्बिका दत्त
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हमें खुद चीरनी होगी
अपनी सगी माँ की छाती
ढूँढ लेने होंगे वो मकान
जिनमें बंधक रखे है-अपने पांव।
हम जर खरीद गुलाम नहीं हैं
किसी भी अनिश्चित उड़ान के
खुन कतर-ब्योंत करनी होगी हमें
अपने सुनहले पंखों की
हमें निश्चित कर लेनी चाहिए
अपनी बस्तियाँ
अपने रास्ते
अपने पंख, अपने आसमान
जमीन के कई फुट नीचे
यानि आदमी के पावों की दिशा में
काफी नीचे तक खोदते रहने के बाद
मिल जाता है, बहता हुआ साफ पानी
जिन लोगों को पानी की जरूरत है
उन्हें, अपने पाँव ढूंढने चाहिये।