भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हारमोनियम / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
87.240.15.21 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 16:34, 11 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: मंगलेश डबराल Category:कविताएँ Category:मंगलेश डबराल ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: मंगलेश डबराल

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


पानी बहने और तारे चमकने की तरह

एक कठिन संगीतहीन संसार में

वह भी बजा कुछ देर तक

वह कमरे के बीचोंबीच रखा था

उजाले में

उसके कारण जानी गई यह जगह

लोग आते और उसके चारों ओर बैठते


अब वह पड़ा है बाकी सामान के बीच

पीतल लोहे और लकड़ी के साथ

उसे बजाने पर अब राग दुर्गा या पहाड़ी के स्वर नहीं आते

सिर्फ़ एक उसाँस सुनाई देती है

कभी-कभी वह छिप जाता है एक पुश्तैनी बक्से में

मिज़ाजपुर्सी के लिए आए लोगों से

बचने की कोशिश करता हुआ


(1993 में रचित)