भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यक्ष-प्रश्न / राजेश चड्ढ़ा
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:20, 1 फ़रवरी 2011 का अवतरण
ख़ुद को ,
ख़ुद से
ढ़ूंढ़ कर,
ले आया हूं ,
भीतर से बाहर ।
भीतर था ,
तो मुझे ,
मैं-
दिखाई देता था ।
बाहर हूं ,
तो-
दिखाई देता हूं ।
सवाल ये है-
कि आख़िर,
मैं दिखता कैसा हूं ?